RAJ INFOTECH SYSTEM @ NETWORK

RAJ INFOTECH SYSTEM @ NETWORK
हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे। हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे॥ हे नाथ मैँ आपको भूलूँ नही...!! हे नाथ ! आप मेरे हृदय मेँ ऐसी आग लगा देँ कि आपकी प्रीति के बिना मै जी न सकूँ.

Sunday, November 11, 2012

धनतेरस




धनतेरस
जिस प्रकार देवी लक्ष्मी सागर मंथन से उत्पन्न हुई थी उसी प्रकार भगवान धनवन्तरि भी अमृत कलश के साथ सागर मंथन से उत्पन्न हुए हैं। देवी लक्ष्मी हालांकि की धन देवी हैं परन्तु उनकी कृपा प्राप्त करने के लिए आपको स्वस्थ्य और लम्बी आयु भी चाहिए यही कारण है दीपावली दो दिन पहले से ही यानी धनतेरस से ही दीपामालाएं सजने लगती हें।
कार्तिक कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि के दिन ही धन्वन्तरि का जन्म हुआ था इसलिए इस तिथि को धनतेरस के नाम से जाना जाता है । धन्वन्तरी जब प्रकट हुए थे तो उनके हाथो में अमृत से भरा कलश था। भगवान धन्वन्तरी चुकि कलश लेकर प्रकट हुए थे इसलिए ही इस अवसर पर बर्तन खरीदने की परम्परा है। कहीं कहीं लोकमान्यता के अनुसार यह भी कहा जाता है कि इस दिन धन (वस्तु) खरीदने से उसमें 13 गुणा वृद्धि होती है। इस अवसर पर धनिया के बीज खरीद कर भी लोग घर में रखते हैं। दीपावली के बाद इन बीजों को लोग अपने बाग-बगीचों में या खेतों में बोते हैं।
प्रथा
धनतेरस के दिन चांदी खरीदने की भी प्रथा है। अगर सम्भव न हो तो कोइ बर्तन खरिदे। इसके पीछे यह कारण माना जाता है कि यह चन्द्रमा का प्रतीक है जो शीतलता प्रदान करता है और मन में संतोष रूपी धन का वास होता है। संतोष को सबसे बड़ा धन कहा गया है। जिसके पास संतोष है वह स्वस्थ है सुखी है और वही सबसे धनवान है। भगवान धन्वन्तरी जो चिकित्सा के देवता भी हैं उनसे स्वास्थ्य और सेहत की कामना के लिए संतोष रूपी धन से बड़ा कोई धन नहीं है। लोग इस दिन ही दीपावली की रात लक्ष्मी गणेश की पूजा हेतु मूर्ति भी खरीदते हें। यह दिन व्यापारियोँ
कथा
धनतेरस की शाम घर के बाहर मुख्य द्वार पर और आंगन में दीप जलाने की प्रथा भी है। इस प्रथा के पीछे एक लोक कथा है, कथा के अनुसार किसी समय में एक राजा थे जिनका नाम हेम था। दैव कृपा से उन्हें पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई। ज्योंतिषियों ने जब बालक की कुण्डली बनाई तो पता चला कि बालक का विवाह जिस दिन होगा उसके ठीक चार दिन के बाद वह मृत्यु को प्राप्त होगा। राज इस बात को जानकर बहुत दुखी हुआ और राजकुमार को ऐसी जगह पर भेज दिया जहां किसी स्त्री की परछाई भी न पड़े। दैवयोग से एक दिन एक राजकुमारी उधर से गुजरी और दोनों एक दूसरे को देखकर मोहित हो गये और उन्होंने गन्धर्व विवाह कर लिया।
विवाह के पश्चात विधि का विधान सामने आया और विवाह के चार दिन बाद यमदूत उस राजकुमार के प्राण लेने आ पहुंचे। जब यमदूत राजकुमार प्राण ले जा रहे थे उस वक्त नवविवाहिता उसकी पत्नी का विलाप सुनकर उनका हृदय भी द्रवित हो उठा परंतु विधि के अनुसार उन्हें अपना कार्य करना पड़ा। यमराज को जब यमदूत यह कह रहे थे उसी वक्त उनमें से एक ने यमदेवता से विनती की हे यमराज क्या कोई ऐसा उपाय नहीं है जिससे मनुष्य अकाल मृत्यु के लेख से मुक्त हो जाए। दूत के इस प्रकार अनुरोध करने से यमदेवता बोले हे दूत अकाल मृत्यु तो कर्म की गति है इससे मुक्ति का एक आसान तरीका मैं तुम्हें बताता हूं सो सुनो। कार्तिक कृष्ण पक्ष की रात जो प्राणी मेरे नाम से पूजन करके दीप माला दक्षिण दिशा की ओर भेट करता है उसे अकाल मृत्यु का भय नहीं रहता है । यही कारण है कि लोग इस दिन घर से बाहर दक्षिण दिशा की ओर दीप जलाकर रखते हैं।
धन्वंतरि
धन्वन्तरि देवताओं के वैद्य हैं और चिकित्सा के देवता माने जाते हैं इसलिए चिकित्सकों के लिए धनतेरस का दिन बहुत ही महत्व पूर्ण होता है। धनतेरस के संदर्भ में एक लोक कथा प्रचलित है कि एक बार यमराज ने यमदूतों से पूछा कि प्राणियों को मृत्यु की गोद में सुलाते समय तुम्हारे मन में कभी दया का भाव नहीं आता क्या। दूतों ने यमदेवता के भय से पहले तो कहा कि वह अपना कर्तव्य निभाते है और उनकी आज्ञा का पालन करते हें परंतु जब यमदेवता ने दूतों के मन का भय दूर कर दिया तो उन्होंने कहा कि एक बार राजा हेमा के ब्रह्मचारी पुत्र का प्राण लेते समय उसकी नवविवाहिता पत्नी का विलाप सुनकर हमारा हृदय भी पसीज गया लेकिन विधि के विधान के अनुसार हम चाह कर भी कुछ न कर सके।
एक दूत ने बातों ही बातों में तब यमराज से प्रश्न किया कि अकाल मृत्यु से बचने का कोई उपाय है क्या। इस प्रश्न का उत्तर देते हुए यम देवता ने कहा कि जो प्राणी धनतेरस की शाम यम के नाम पर दक्षिण दिशा में दीया जलाकर रखता है उसकी अकाल मृत्यु नहीं होती है। इस मान्यता के अनुसार धनतेरस की शाम लोग आँगन मे यम देवता के नाम पर दीप जलाकर रखते हैं। इस दिन लोग यम देवता के नाम पर व्रत भी रखते हैं।
धनतेरस के दिन दीप जलाककर भगवान धन्वन्तरि की पूजा करें। भगवान धन्वन्तरी से स्वास्थ और सेहतमंद बनाये रखने हेतु प्रार्थना करें। चांदी का कोई बर्तन या लक्ष्मी गणेश अंकित चांदी का सिक्का खरीदें। नया बर्तन खरीदे जिसमें दीपावली की रात भगवान श्री गणेश व देवी लक्ष्मी के लिए भोग चढ़ाएं।
दीवाली का त्योहार पांच दिन तक चलता है। इसकी शुरुआत होती है धनतेरस से। दीवाली से दो दिन पहले से ही यानी धनतेरस से ही दीपामालाएं सजने लगती हैं। धनतेरस धन-सम्पत्ति और अच्छी स्वास्थ्य के लिए मनाया जाता है। देवताओं को अमर करने के लिए भगवान विष्णु  धनवंतरि के अवतार इसी दिन समुद्र से अमृत का कलश लेकर निकले थे। कार्तिक कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि के दिन धनवंतरि का जन्म हुआ था इसलिए इस तिथि को धनतेरस के नाम से जाना जाता है। निरोग रहने के लिए धनवंतरि की पूजा की जाती है। धनतेरस पर धनवंतरि की पूजा करने से लक्ष्मी जी प्रसन्न होकर दीपावली में धन-वर्षा करती हैं।

परम्परा:देवी लक्ष्मी की तरह ही भगवान धनवंतरि भी सागर मंथन से उत्पन्न हुए हैं। धनवंतरि जब प्रकट हुए थे तो उनके हाथ में अमृत से भरा कलश था। इसलिए ही इस अवसर पर बर्तन खरीदने की परम्परा है। धनतेरस के दिन सोने और चांदी के बर्तन, सिक्के और आभूषण खरीदने की परम्परा रही है। सोना सौंदर्य में वृद्धि तो करता ही है, मुश्किल घड़ी में संचित धन के रूप में भी काम आता है। कुछ लोग शगुन के रूप में सोने या चांदी के सिक्के भी खरीदते हैं। यह भी कहा जाता है कि इस दिन धन (वस्तु) खरीदने से उसमें 1& गुणा वृद्धि होती है। लोग इस दिन ही दीवाली की रात पूजा करने के लिए लक्ष्मी व गणेश जी की मूर्ति भी खरीदते हैं।

इस अवसर पर धनिया के बीज खरीद कर भी लोग घर में रखते हैं। ऐसी मान्यता है कि इस दिन सूखे धनिया के बीज खरीद कर घर में रखना भी परिवार की धन संपदा में वृद्धि करता है। दीवाली के बाद इन बीजों को लोग अपने बाग-बगीचों या खेतों में बोते हैं। ये बीज उन्नति व धन वृद्धि के प्रतीक होते हैं। बदलते दौर के साथ लोगों की पसंद और जरूरत भी बदली है। कुछ लोग धनतेरस के दिन विलासिता से भरपूर वस्तुएं खरीदते हैं तो कुछ जरूरत की वस्तुएं खरीद कर धनतेरस का पर्व मनाते हैं। वैश्वीकरण के इस दौर में भी लोग अपनी परम्परा को नहीं भूले हैं और अपने सामथ्र्य के अनुसार यह पर्व मनाते हैं। धनतेरस के दिन वाहन खरीदने का फैशन सा बन गया है। लोग इस दिन लोग गाड़ी खरीदना शुभ मानते हैं। कुछ लोग मोबाइल, कम्प्यूटर और बिजली के उपकरण इत्यादि भी धनतेरस पर ही खरीदते हैं।

धनवंतरि की पूजा: धनतेरस के दिन भगवान धनवंतरि की मूर्ति या चित्र साफ स्थान पर स्थापित करें और पूर्व की ओर मुखकर बैठ जाएं। उसके बाद भगवान धनवंतरि का आह्वान निम्न मंत्र से करें-

सत्यं च येन निरतं रोगं विधूतं,अन्वेषित च सविधिं आरोग्यमस्य।
गूढं निगूढं औषध्यरूपं, धनवंतरिं च सततं प्रणमामि नित्यं।।

इसके बाद पूजन स्थल पर चावल चढ़ाएं और आचमन के लिए जल छोड़े। भगवान धनवंतरि के चित्र पर गंध, अबीर, गुलाल पुष्प, रोली, आदि चढ़ाएं। चांदी के पात्र में खीर का नैवेद्य लगाएं। अब दोबारा आचमन के लिए जल छोड़ें। मुख शुद्धि के लिए पान, लौंग, सुपारी चढ़ाएं। धनवंतरि को वस्त्र (मौली) अर्पण करें। शंखपुष्पी, तुलसी, ब्राह्मी आदि पूजनीय औषधियां भी अर्पित करें।

रोगनाश की कामना के लिए इस मंत्र का जाप करें-
ऊँ रं रूद्र रोगनाशाय धन्वन्तर्ये फट्।।

अब भगवान धनवंतरि को श्रीफल व दक्षिणा चढ़ाएं। पूजन के अंत में कर्पूर आरती करें। कुबेर की पूजा: धनतेरस पर आप धन के देवता कुबेर को प्रसन्न करके अपनी दरिद्रता दूर कर धनवान बन सकते हैं। धन के देवता कुबेर को प्रसन्न करने का यह सबसे अछा मौका है। यदि कुबेर आप पर प्रसन्न हो गए तो आप के जीवन में धन-वैभव की कोई कमी नहीं रहेगी। कुबेर को प्रसन्न करना बेहद आसान है। धन-सम्पति की प्राप्ति हेतु घर के पूजास्थल में एक दीया जलाएं। मंत्रोचार के द्वारा आप कुबेर को प्रसन्न कर सकते हैं। इसके लिए पारद कुबेर यंत्र के सामने मंत्रोचार करें। यह उपासना धनतेरस से लेकर दीवाली तक की जाती है। ऐसा करने से जीवन में किसी भी प्रकार का अभाव नहीं रहता, दरिद्रता का नाश होता है और व्यापार में वृद्धि होती है।

कुबेर का मंत्र: ऊँ यक्षाय कुबेराय वैश्रवणाय धनधान्यादिपतये धनधान्य समृद्धि मे देहि दापय स्वाहा।।

यम की पूजा: माना जाता है कि धनतेरस की शाम जो व्यक्ति यम के नाम पर दक्षिण दिशा में दीया जलाकर रखता है उसकी अकाल मृत्यु नहीं होती है। इस मान्यता के अनुसार धनतेरस की शाम लोग आंगन में यम देवता के नाम पर दीप जलाकर रखते हैं और उनकी पूजा करके प्रार्थना करते हैं कि वह घर में प्रवेश नहीं करें और किसी को कष्ट नहीं पहुंचाएं। इस दिन लोग यम देवता के नाम पर व्रत भी रखते हैं।

लक्ष्मी की कृपा पाने के लिए...लक्ष्मी जी की कृपा पाने के लिए अष्टदल कमल बनाकर कुबेर, लक्ष्मी एवं गणेश जी की स्थापना कर उपासना की जाती है। इस अनुष्ठान में पांच घी के दीपक जलाकर और कमल, गुलाब आदि पुष्पों से उत्तर दिशा की ओर मुख करके पूजन करना लाभप्रद होता है। इसके अलावा ओम् श्रीं श्रीयै नम: का जाप करना चाहिए।

कथा-धनतेरस की शाम घर के आंगन में दीप जलाने की प्रथा है। इस प्रथा के पीछे एक लोक कथा है, जिसके अनुसार किसी समय में एक राजा थे जिनका नाम हेम था। ईश्वर की कृपा से उन्हें पुत्र हुआ। योतिषियों ने जब बालक की कुंडली बनाई तो पता चला कि बालक के विवाह के ठीक चार दिन बाद उसकी अकाल मृत्यु हो जाएगी। राजा यह जानकर बहुत दुखी हुआ। उसने राजकुमार को ऐसी जगह भेज दिया जहां किसी स्त्री की परछाई भी न पड़े। दैवयोग से एक दिन एक राजकुमारी उधर से गुजरी और दोनों एक दूसरे को देखकर मोहित हो गए और उन्होंने गन्धर्व विवाह कर लिया।

विवाह के बाद विधि का विधान सामने आया और यमदूत उस राजकुमार के प्राण लेने आ पहुंचे। राजकुमारी मां लक्ष्मी की बड़ी भक्त थीं। उसको भी अपने पति पर आने वाली विपत्ति के बारे में पता चल गया। राजकुमारी ने चौथे दिन का इंतजार पूरी तैयारी के साथ किया। जिस रास्ते से सांप के आने की आशंका थी, उसने वहां सोने-चांदी के सिक्के और हीरे-जवाहरात आदि बिछा दिए। पूरे घर को रोशनी से जगमगा दिया गया, यानी सांप के आने के लिए कमरे में कोई रास्ता अंधेरा नहीं छोड़ा गया। इतना ही नहीं, राजकुमारी ने अपने पति को जगाए रखने के लिए उसे पहले कहानी सुनाई और फिर गीत गाने लगी।
इसी दौरान जब मृत्यु के देवता यमराज ने सांप का रूप धारण करके कमरे में प्रवेश करने की कोशिश की, तो रोशनी की वजह से उनकी आंखें चुंधिया गईं। इस कारण सांप दूसरा रास्ता खोजने लगा और रेंगते हुए उस जगह पहुंच गया, जहां सोने तथा चांदी के सिक्के रखे हुए थे। डसने का मौका न मिलता देख, विषधर भी वहीं कुंडली लगाकर बैठ गया और राजकुमारी के गाने सुनने लगा। इसी बीच सूर्य देव ने दस्तक दी यानी सुबह हो गई। यम देवता वापस जा चुके थे। इस तरह राजकुमारी ने अपनी पति को मौत के पंजे में पहुंचने से पहले ही छुड़ा लिया। यह घटना जिस दिन घटी थी, वह धनतेरस का दिन था, इसलिए इस दिन को यम दीपदानभी कहते हैं।  इसी कारण धनतेरस की पूरी रात रोशनी की जाती है


No comments:

Post a Comment