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हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे। हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे॥ हे नाथ मैँ आपको भूलूँ नही...!! हे नाथ ! आप मेरे हृदय मेँ ऐसी आग लगा देँ कि आपकी प्रीति के बिना मै जी न सकूँ.

Thursday, June 28, 2012

बेटी होती है माँ की दुलारी, जान से बढकर पिता को प्यारी पापा की लाडली








बेटी होती है माँ की दुलारी, जान से बढकर पिता को प्यारी पापा की लाडली 

बाबुल की दुआएं लेती जा जा तुझको सुखी संसार मिले मैके की कभी ना याद आए ससुराल में इतना प्यार मिले बाबुल की दुआएं ...
नाज़ों से तुझे पाला मैंने कलियों की तरह फूलों की तरह बचपन में झुलाया है तुझको बाँहों ने मेरी झूलों की तरह मेरे बाग़ की ऐ नाज़ुक डाली तुझे हर पल नई बहार मिले 
बाबुल की दुआएं ...
जिस घर से बँधे हैं भाग तेरे उस घर में सदा तेरा राज रहे होंठों पे हँसी की धूप खिले माथे पे ख़ुशी का ताज रहे कभी जिसकी जोत न हो फीकी तुझे ऐसा रूप-सिंगार मिले 
बाबुल की दुआएं ...
बीतें तेरे जीवन की घड़ियाँ आराम की ठंडी छाँवों में काँटा भी न चुभने पाए कभी मेरी लाड़ली तेरे पाँवों में उस द्वार से भी दुख दूर रहें जिस द्वार से तेरा द्वार मिले 
बाबुल की दुआएं ...

आंखों का तारा
बेटियां भी जिन्हें कभी शिकायत रहती थी कि पापा मेरे और भाई के बीच में भेदभाव करते हैं, वही आज गर्व से सिर उठाकर कर रही हैं, मैं हंू पापा की आंखों का तारा. यानि की आज पिता-पुत्री का रिश्ता गहरी दोस्ती में बदलता जा रहा है. जहां इमोशन और संस्कार दोनों का समन्वय नजर आता है. घटती दूरियों के बीच पिता को बेटी की कीमत समझ में आने लगी है. बेटियों के प्रति पिता के बढ़ते लगाव का कारण वर्तमान में बेटों से ज्यादा बेटियों द्वारा सफलता का मुकाम हासिल करना है.

मां-बाप का ध्यान
ऐसा नहीं है कि बेटे तरक्की नहीं कर रहे या वह किसी लायक नहीं, लेकिन बेटों की जीवन शैली, उनकी प्राथमिकताएं एवं जरूरत आदि बदल गई हैं. जहां शादी के बाद बेटे मां-बाप को छोडकर अलग गृहस्थी बसाना पसंद करते हैं, वहीं बेटियां शादी के बाद भी मां-बाप की फिक्र करती हैं, शादी के बाद भी भावनात्मक रूप से वो मां-बाप से अलग नहीं हो पाती, आज परिवार वालों को भी नजर आने लगा है, कि भविष्य में बेटों से कुछ उम्मीद का सहारा नजर आ रही हैं बेटियां. बल्कि पिता एवं घर परिवार के रूतबे को भी बढ़ा रही हैं. ऐसे में आज के पैरेंटस खासकर पिता को चाहिए कि अपनी बेटी की परवरिश बड़े प्यार और दुलार से करे.

साथ-साथ समय बिताएं
सप्ताह में कम से कम एक बार साथ-साथ लंच करने बैठें। कोई ऐसा खेल जिसे आपकी बेटी भी सहजता से खेल सकती है, उसके साथ खेलें। उसके साथ हर पहलू पर चर्चा करें, साथ ही इस बात का ख्याल रखें कि ज्यादा से ज्यादा समय उसकी बातें सुनने में दें। बेटी के स्कूल या कॉलेज फंक्शन में सदैव शामिल हों। अगर बेटी किसी सामाजिक संस्था से जुड़ी है तो उसके साथ उस कार्य में परस्पर अपना भी सहयोग दें। आपके इस कार्य पर आपकी बेटी ही गर्व महसूस नहीं करेगी, बल्कि आप स्वयं खुद में अच्छा महसूस करेंगे।
दोस्त के रूप में सही राह दिखाएं
अगर आपको यह विदित है कि आपकी टीनएजर बेटी तनाव का शिकार है तो अपने अनुभव बेटी के साथ शेयर करें कि आपने ऐसी परिस्थितियों का सामना किस तरह किया था और किस तरह उन तमाम परिस्थितियों को अपने अनुकूल बनाया था। उसे आप यह भी समझा सकते हैं कि किस तरह उसे पर्याप्त नींद लेनी चाहिए, और उसे आशावादी बनते हुए वास्तविक जीवन से ताल्लुक रखना चाहिए।

बनें पथ-प्रदर्शक
अपनी बेटी की प्रतिभा को पहचानते हुए उसे उस क्षेत्र में आगे बढ़ने के लिए प्रोत्साहित करें, जिसमें वह अपना बेहतर प्रदर्शन दे सकती है। उसे समझाएं कि अब उसे इसी क्षेत्र में पूरी तरह से फोकस करते हुए आगे बढ़ना है, क्योंकि उसके लिए इस क्षेत्र में व्यापक संभावनाएं हैं। उसके अच्छे प्रयासों पर खुल कर तारीफ करें। हां, एक बात का खासतौर पर ख्याल रखना चाहिए कि किसी दूसरी लड़की से अपनी बेटी की तुलना कतई नहीं करनी चाहिए, इससे बेटी के मन पर नकारात्मक प्रभाव पड़ सकते हैं।
वास्तविकता से परिचित कराएं
इस उम्र में विपरीत लिंग के प्रति बढ़ते आकर्षण के नतीजतन लड़कियां शारीरिक सुन्दरता पर ज्यादा ध्यान केन्द्रित करने लगती हैं। ऐसे में अगर लड़की किसी लड़के को अपनी ओर आकर्षित कर पाने में असफल होती है तो वह डिप्रेशन का शिकार हो जाती है। एक सर्वे के मुताबिक 13 वर्ष की लगभग 53 प्रतिशत लड़कियां अपनी शारीरिक सुन्दरता को लेकर तनाव में रहती हैं। 17 वर्ष तक पहुंचते-पहुंचते यह प्रतिशत बढ़ कर 78 तक हो जाता है। तो समय-समय पर अपनी युवा होती बेटी को यह बात समझाते चलें कि यह मायने नहीं रखता कि ‘तुम कैसी दिखती हो’ बल्कि महत्व तो इस बात का है कि ‘लोगों के बीच तुम्हारी पहचान एक प्रतिभाशाली लड़की की है या नहीं’।

सख्त रहना भी जरूरी
ज्यादा ढील आपकी बेटी को गलत राह भी दिखा सकती है। इसलिए कहीं-कहीं आपका सख्त होना भी जरूरी है। जैसे- इस बात पर पूरी नजर रखें कि उसकी किन लोगों से दोस्ती है, दोस्त का पारिवारिक माहौल कैसा है, वह कहां जाती है, अपना कितना समय, कहां-कहां देती है आदि। परिवार के नियमों और सिद्धान्तों पर चलने के लिए उसे समझाएं, साथ ही उसे यह भी साफतौर पर कहें कि ‘हम तुमसे हमेशा अच्छे कामों की अपेक्षा रखते हैं, और तुम्हें हमारी आशाओं पर खरा साबित होकर दिखाना है।’

ये निर्विवाद सच है कि बेटियां अपने पिता के प्रति अधिक निष्ठावान होती हैं। यही कारण है कि पहले बेटियों से कुछ उखड़े-उखड़े रहने वाले पिता भी अब अपने प्यार के साथ जिम्मेदारियों में भी बेटी को उत्तराधिकारी बनाते हैं। पिता-पुत्री का रिश्ता अनमोल है और आज के जमाने की बेटियां भी पिता को गौरवांवित होने का मौका देती हैं, बशर्ते उन पर विश्वास किया जाए।
जिस तरह से एक स्त्री के लिए पहली बार मां बनने का अनुभव खुशी, सुकून और जिम्मेदारी जैसे बहुत से जज्बातों से भरा होता है, ठीक वैसा ही अनुभव होता है, एक पुरूष का जब वह पिता बनता है। एक पिता जब अपने अंश को जीव रूप में देखता है तो एक अच्छा पिता बनने की इच्छा उसमें स्वयं ही आ जाती है। उसका प्रेम आपको हर पल कुछ नया सिखाता है, चाहे पहली बार उंगली पकड़ कर चलना सीखने की बात हो या अच्छे करियर तक पहुंचने का सवाल हो। खास बात ये हैं कि आज का आधुनिक पिता पहले के पुत्र मोह में जकड़े रहने वाला पिता की तरह नहीं रह गया है। वो बेटियों पर भी बेटों जितना भरोसा दिखाने व जताने लगा है।
अच्छे पापा बनने के लिए..
बदलते परिवेश में पिता की भूमिका भी बदलती जा रही है. एक वक्त था कि घर में बच्चों की परवरिश और उनकी पढ़ाई-लिखाई की जिम्मेदारी केवल मां पर ही होती थी. यह बात आज भी काफी हद तक सही है, पर इस सच का एक पहलू यह भी है कि इन दिनों पिता अपने बच्चों की परवरिश और पढ़ाई-लिखाई में दिलचस्पी लेने लगे है. अतीत में वे बच्चों के साथ घुलते-मिलते नहीं थे, पर आज वे न्यूज व क्रिकेट देखने के अलावा बच्चों के साथ उनकी इच्छा का ख्याल कर कार्टून चैनल भी देख लेते हैं. यही नहीं वे बच्चों के होम वर्क का भी निरीक्षण करते है. फिर भी अनेक ऐसे पिता हैं, जो बच्चों की परवरिश और उनकी शिक्षा पर पर्याप्त ध्यान नहीं दे रहे है. यह बात अच्छी नहीं है. कुछ बातें जिन पर अमल कर आप पहले से कहीं बेहतर रूप में पिता की भूमिका निभा सकते हैं.

शालीनता से पेश आएं
बच्चों के साथ शालीनता से बात करें. उम्र में छोटा समझकर उनका सम्मान क्या करना? इस मानसिकता से उबरें. याद रखें, जब आप बच्चों का सम्मान करेंगे, तभी बच्चे आपका सम्मान करना सीखेंगे. जब बच्चे कोई बात कहें तो उनकी बातों को गौर से सुनें. उनकी बात के बीच में बेवजह हस्तक्षेप न करें. उन्हे कुछ मामलों में निर्णय लेने की छूट दें.

प्रेम प्रकट करें
बच्चों के समक्ष प्रेम को विभिन्न तरह से प्रकट करना जरूरी है. आप सिर्फ उनकी सुख-सुविधा का ही ध्यान रखें और उनके सामने प्रेम का प्रकटीकरण न करें तो बाल-बुद्धि में यह बात कैसे बैठेगी कि उनके पापा उनसे बेहद प्यार करते हैं. इसके लिए दिन में जब भी मौका मिले तो बच्चों को गले से लगाएं. उन्हे दुलराएं या उनकी पीठ थपथपाएं. इससे बच्चे को यह अहसास होगा कि उनके पिता उन्हें बहुत प्यार करते हैं. इससे आपके और बच्चे के बीच भावनात्मक रिश्ता और मजबूत होगा. नतीजतन बच्चा और अनुशासित रहेगा. साथ ही उसका आपके प्रति सम्मान बढ़ेगा.

मां का सम्मान जरूरी
पिता को अपने बच्चे की मां का भी सम्मान करना चाहिए. इससे बच्चे के मन में छाप पड़ेगी कि पिता उसकी मां का कितना सम्मान करते हैं इसलिए मुझे भी मां का सम्मान करना चाहिए. इसके बावजूद यदि आपके और पत्नी के बीच कभी मतभेद होते हंै तो उन्हे सार्थक संवाद के जरिए सुलझाएं. ऐसा करने से बच्चे के दिलोदिमाग पर एक अच्छा असर पड़ेगा कि यदि आपसी समझदारी से काम लिया जाए तो आपसी मतभेद प्रेम पर हावी नहीं हो सकते. इसके लिए बच्चे के समक्ष पत्नी को कोई अपशब्द न कहे. पत्नी के प्रति आपके अच्छे व्यवहार से बच्चा अनुशासित रहेगा.

1 comment:

  1. दुलारी हैं बेटियां...

    फूलों पर तितलियों सी,

    प्यारी हैं बेटियाँ;

    हर घर के आँगन की,

    फुलवारी हैं बेटियाँ.

    जिन्हें है परख

    पुष्प और प्रसून की,
    http://shabdanagari.in/Website/Article/दुलारीहैंबेटियां

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